Saturday, July 17, 2010

मैं और पिताजी की बरसी


सत्येन्द्र नाथ दास

अपने पूर्व के पोस्ट "कातिल कौन?" में मैंने स्पष्ट किया था कि किस प्रकार मेरे पिता सत्येन्द्र नाथ दास अपने ही पुत्र किशोर कुमार वर्मा के कारण मृत्यु को प्राप्त हुए थे.  कल 16.07.2010 को उनकी 5वीं बरसी मनायी गयी.  पर दुःख के साथ कहना है कि घर में मनाये गए इस कार्यक्रम की जानकारी तक मुझे नहीं दी गयी.  और आज किसी बाहरी व्यक्ति से जानकारी मिली कि कल बरसी मनायी गयी.
2005 में 12.07.2005 को पिताजी के मृत्यु के बाद 21 अगस्त 2005 को मैं सहरसा के अपने घर से निकल गया था.  2006 के बरसी के समय मैं सहरसा में ही अलग डेरा में रह रहा था.  उस समय मैं अपने घर जाने के विरोध में था.  वैसे बरसी में आने के लिए कहा भी नहीं गया था.  मैं बरसी में घर नहीं गया. 2007 के बरसी कब बीत गयी मुझे पता भी नहीं चला.  उस समय मैं पटना में रह रहा था.  घर के लोग मेरे संपर्क में रह रहे थे पर बरसी के कार्यक्रम के बारे में मुझे कभी भी नहीं बताये और मुझे पता भी नहीं चला.  2008 के बरसी से पहले मैं ही किसी के माध्यम से बरसी के तिथि पता करना चाहा तो वे मेरे घर में यह चर्चा किये कि महेश जी ऐसा पूछ रहे थे.  उसके बाद मेरे घर से किसी अन्य को फोन करके कहा गया कि महेश बरसी के बारे में पूछ रहा था, फलां दिन बरसी है...... यह फोन किसी अन्य को किया गया था, मुझे फोन नहीं किया गया.  दूसरी तरफ लोग चाहते भी थे कि मैं घर वापस आ जाऊं.  उस समय भी मैं पटना में रह रहा था.  मैं बरसी में घर गया.  पर जाने से पहले फोन करने जानकारी दे दिया था.  उसके बाद फिर मैं कई बार घर गया.  2009 में बरसी से पहले से ही मैं घर में था.  12.06.2009 को दिनेश जी की शादी हुयी.  उनके शादी के बाद मुझे कह दिया गया कि यहाँ से चले जाओ और फिर कभी नहीं आना.  24.06.2009 को बरसी था और बरसी से मात्र चार दिन पहले 20.06.2009 को मैं घर से वापस पटना आ गया.  फिर 13.04.2010 को मैं सहरसा गया.  मैं दिनेश जी के दुकान पर गया.  पर दिनेश जी मुझे घर जाने नहीं दिए.  उनके दुकान पर मैं करीब 2 घंटे रहा पर वे घर जाने नहीं दिए.  फिर मैं वापस पटना आ गया.  मुझे घर जाने नहीं दिया गया इस संबंध में मैं दिनेश जी व माँ को पत्र लिखकर पूछा कि किस अधिकार के तहत मुझे घर जाने नहीं दिया गया.  पर अभी तक मेरे उस पत्र पर किसी का भी जवाब नहीं आया है.  2010 के बरसी में भी मुझे किसी भी माध्यम से बरसी के कार्यक्रम की जानकारी नहीं दी गयी.  और आज 17.06.2010 को मुझे किसी अन्य के माध्यम से जानकारी मिली कि कल 16.06.2010 को बरसी हुआ.
मुझे बरसी के कार्यक्रम की जानकारी नहीं देकर लोग सही किये या गलत यह तो अलग बात है पर इतनी बात तो सही है कि घर के लोग मेरे साथ हमेशा गलत पर गलत किये जा रहे हैं........................
यदि मैं सही ढंग से जिन्दा रहूँ तो जल्द ही मैं अपने साथ हुए सारी घटनाओं को व अपनी आत्मकथा को सार्वजनिक करूँगा.

सत्यमेव जयते
सत्यमेव जयते


--महेश कुमार वर्मा
Mahesh Kumar Verma
+919955239846


Sunday, May 30, 2010

कातिल कौन?



सत्येन्द्र नाथ दास



कातिल कौन?

सन २००५ की बात है.  सत्येन्द्र बाबू के लंबे समय से चल रहे बीमारी से सभी परेशान थे.  उनके बीमारी  का पता नहीं चल रहा था.  आखिर डॉक्टर को बीमारी का पता चला.  जांच रिपोर्ट के आधार पर सहरसा के डॉक्टर मिथिलेश बाबू ने स्पष्ट कर दिया कि उनका किडनी फेल है,  किडनी काम नहीं कर रहा है और डॉक्टर बेहतर इलाज के लिए उन्हें IGIMS, पटना (Indira Gandhi Institute of Medical Science, Patna -- इंदिरा गाँधी आयुर्विज्ञान संस्थान, पटना) रेफर कर दिया.
सत्येन्द्र बाबू को पहले से प्रोस्टेट का शिकायत था.  पहले से दो बार प्रोस्टेट का ऑपरेशन हो चूका था पर फिर भी पूर्ण सुधार नहीं हुआ था.  कहा जाता है कि उसी प्रोस्टेट के कारण ही पेशाब के थैली में पेशाब जमा रहने के कारण किडनी पर प्रभाव पड़ा और किडनी खराब हुआ.  सहरसा के डॉक्टर के द्वारा पटना रेफर किये जाने के बाद उन्हें ईलाज के लिए IGIMS में भर्ती कराकर उनका ईलाज चल रहा था.  किडनी फेल था यह बात तो स्पष्ट था ही पर फिर भी IGIMS के डॉक्टर के अनुसार ईलाज चल रहा था.  डॉक्टरों ने जांच के बाद आपसी विचार के बाद किडनी बदलने की बात पर और तब तक डायलेसिस पर रखने की बात पर आए.  पर अब तक भी औपचारिक रूप से डॉक्टर द्वारा यह बात पुर्जा पर नहीं लिखा गया था और ईलाज चल ही रहा था.  IGIMS में सत्येन्द्र बाबू के साथ उनके लड़के किशोर जी व दिनेश जी रह रहे थे.  इसी दौरान कभी किसी बात पर सत्येन्द्र बाबू को अपने इन लड़कों में से किसी से झंझट हो गया व वे वहाँ से चलने की बात कहने लगे.  इसपर उनके लड़का किशोर जी IGIMS से छुट्टी कराकर उन्हें वापस सहरसा घर पर ले आए.  सबों को यही जानकारी दी गयी कि किडनी बदलना पड़ेगा और उस समय तक डायलेसिस पर रखना पड़ेगा, जिसमें बहुत खर्च है.  जबकि जानकारी के अनुसार वास्तविकता यह भी है कि  IGIMS से छुट्टी के समय तक भी कभी भी डॉक्टर ने औचारिक रूप से पुर्जा पर किडनी बदलने या डायलेसिस पर रखने की बात नहीं लिखा था.  सही बात थी कि बाप-बेटा की आपसी झंझट के कारण ही किशोर जी ने उन्हें छुट्टी कराकर वापस घर पर ले आए थे.  
उनके सहरसा वापस आने के बाद सहरसा के ही एक आयुर्वेद डॉक्टर से सलाह लिया गया वे घर पर आकर सत्येन्द्र बाबू की हालत देखने के बाद ईलाज करने के लिए तैयार हुए.  उन्हें विश्वाश था कि उनकी बीमारी ठीक हो जाएगी.  वे अपनी दवा दिए.  पर दवा का स्वाद खराब लगने के कारण सत्येन्द्र बाबू ने पहली खुराक के बाद फिर उनका दवा नहीं खाए.  वे उनकी दवा खाने से इंकार कर दिए. 
अब सत्येन्द्र बाबू किसी से भी ईलाज कराने से पहले अपने एक पुराने मित्र दास जी से मिलना चाहते थे, जो औरंगाबाद में रहते थे.  दास जी सत्येन्द्र बाबू के एक पुराने मित्र थे.  पहले दोनों एक ही विभाग (वन विभाग) में कार्य करते थे.  दास जी आयुर्वेद के जानकार भी थे और सत्येन्द्र बाबू को उनके जानकारी पर विश्वाश था.  इसी कारण वे अब कोई ईलाज कराने से पहले उनसे मिलना चाहते थे.  दास जी भी सेवानिवृत्त हो गए थे और वे अब औरंगाबाद में रहते थे.  सत्येन्द्र बाबू सहरसा में रह रहे थे.  सहरसा से औरंगाबाद की दुरी लगभग ५०० किमी था.  सत्येन्द्र बाबू को अपने आयुर्वेद जानकार मित्र दास जी से मिलने की परम ईच्छा तो थी पर उन्हें संदेश देने के लिए उनका कोई फोन नं. नहीं था.  हाँ, वे जहाँ रहते थे वहाँ का पता मालूम था पर पत्र भेजा जाता तो उसे भी तो पहुँचने में समय लग जाता.  अतः सहरसा पोस्ट ऑफिस से ही e-post से उनके पते पर पत्र भेजा गया.  पर कुछ दिनों तक दास जी के यहाँ से कोई जवाब या फोन नहीं आया.  पता नहीं e-post का पत्र मिला या नहीं.  सत्येन्द्र बाबू जल्द-से-जल्द अपने मित्र दास जी से मिलना चाहते थे पर घर से ऐसी व्यवस्था नहीं हुयी कि कोई औरंगाबाद दास जी के पास जाकर सब बात बताकर उन्हें ले आए.  किया क्या गया?  किया गया कि सत्येन्द्र बाबू के दुसरे लड़का दिनेश जी, जो ईलाज के दौरान पटना में थे, ने अपने एक मित्र, जो छत्तरपुर में रहते थे उनको फोन कर दास जी के यहाँ जाने के लिए व उन्हें सब बात बताने के लिए कहे.  दिनेश जी के यह मित्र छत्तरपुर में रहते थे जो औरंगाबाद से लगभग ५०-५५ किमी और आगे था.  वैसे किशोर जी के कुछ मित्र औरंगाबाद में रहते थे पर किशोर जी उन्हें फोन कर दास जी से मिलने के लिए नहीं कहे जबकि एक ही शहर में होने के कारण वे आसानी से मिल सकते थे.  हाँ, तो दिनेश जी अपने छत्तरपुर के मित्र को जो दास जी के यहाँ जाने के लिए जो कहे तो उसमें क्या हुआ इसे भी जानें.  दिनेश जी के वह मित्र औरंगाबाद गए या नहीं और गए तो जाने के बाद क्या हुआ यह सही ढंग से पता नहीं चल पाया.  दिनेश जी को उनके पत्नी से हुए फोन पर बात के अनुसार वे औरंगाबाद गए तो थे पर वहाँ दास जी के यहाँ जाने पर क्या हुआ, दास जी मिले या नहीं या दास जी क्या बोले यह सब बातों की जानकारी नहीं हो पायी.  यह जानकारी प्राप्त करने के लिए दिनेश जी अब जब भी अपने उस मित्र के घर पर फोन करते थे तो उनकी पत्नी से बात होती थी जो कहती थी कि वे काम पर निकल गए हैं.  और उनके पत्नी से यह सही बात की जानकारी नहीं हो पायी कि औरंगाबाद जाने पर क्या हुआ.  दिनेश जी कई दिनों तक प्रयास किये पर उन्हें अपने उस मित्र से फिर बात नहीं हो पाया और यह जानकारी नहीं हो पाया कि औरंगाबाद में क्या हुआ.  दिनेश जी जब फोन करते थे तो उनके वह मित्र घर पर नहीं  मिलते थे, वे काम पर गए हुए रहते थे.  इसमें दो राय नहीं कि फोन उस समय किया जाता जब वे घर पर हों तो उनसे बात हो सकती थी.  और यह निश्चित है कि रात में या देर रात में वे निश्चित रूप से घर पर रहेंगे और दिनेश जी चाहते तो उस समय फोन कर अपने उस मित्र से बात करके यह जान सकते थे कि औरंगाबाद में क्या हुआ?  पर दिनेश जी कभी भी रात में उस समय में फोन नहीं किये जब उनका घर में रहना निश्चित था.  और इस प्रकार यह पता नहीं ही चला कि उनके मित्र का औरंगाबाद जाने पर क्या हुआ. 
सोचनीय है कि ऐसी जरुरी परिस्थिति में जब सत्येन्द्र बाबू अपने मित्र दास जी से मिलना चाहते थे तो कोई सीधे सहरसा से औरंगाबाद जाकर दास जी को ला सकता था, पर ऐसा नहीं किया गया.   किशोर जी के मित्र औरंगाबाद में रहते थे उन्हें फोन नहीं किया गया.  दिनेश जी के मित्र जो औरंगाबाद से ५०-५५ किमी आगे थे, उन्हें फोन किया गया पर उनके औरंगाबाद जाने पर क्या हुआ इस बात का पता नहीं ही लगाया गया.  ऐसा क्यों?
अब सत्येन्द्र बाबू का ईलाज किशोर जी के तात्कालिक स्वसुर (ससुर) (यानी किशोर जी के तात्कालिक पत्नी के पिताजी) अरुण बाबू के देखरेख में प्रारंभ किया गया या यों कहें कि अब अरुण बाबू ही ईलाज कर रहे थे.  अरुण बाबू एक रिटायर्ड इंजिनियर थे.  उनके पास कोई डॉक्टरी डिग्री नहीं था.  बस थोड़ा-मोड़ा होमियोपैथी दवाई वे अपने घर में रखते थे व थोड़ा उसके बारे में जानते थे.  दिनेश जी व अरुण बाबू दोनों खुद अपने दिमाग व होमियोपैथी का किताब पढ़-पढ़कर अपना इलाज प्रारंभ किये.  इनलोगों के पास कोई डॉक्टरी डिग्री नहीं था.  इस प्रकार कहा जा सकता है कि अब नीम-हकीम का ईलाज प्रारंभ हो गया था.  सत्येन्द्र बाबू के हालत बिगड़ती ही गयी, कमजोरी बढती ही गयी. 
अरुण बाबू द्वारा किये जा रहे ईलाज पर सत्येन्द्र बाबू के तीसरे लड़के महेश ने स्पष्ट सलाह दिया कि होमियोपैथ का ही ईलाज कराना है तो होमियोपैथ का ही ईलाज कराएं पर जो होमियोपैथ का डॉक्टर है यानी जो डॉक्टरी कोर्स किया है उनसे सलाह ले लें व उनके देखरेख में दवा दें.  पर पहले से ही उस घर में महेश के किसी भी बात का कोई स्थान नहीं था,  उनके इस बात का भी कोई स्थान नहीं दिया गया और नीम-हकीम अरुण बाबू का ईलाज चलते रहा.  सत्येन्द्र बाबू के हालत में सुधार के स्थान पर हालत बिगड़ती ही गयी.  एक दिन अरुण बाबू ने पेट साफ करने के लिए कोई दवाई दिए.  उस दवा के प्रभाव से अब सत्येन्द्र बाबू को तुरत-तुरत बार-बार पैखाना होने लगा और इस स्थिति पर अरुण बाबू कंट्रोल नहीं पा सके और यह स्थिति सत्येन्द्र बाबू की हालत एकदम खराब कर दी.  उस समय उनकी हालत जो खराब हुयी सो उस दवा देने के पहले उनकी जो हालत थी वह हालत भी वापस नहीं हो सकी.  उनकी हालत बिगड़ती गयी, अब वे खुद खड़े भी नहीं हो पाते थे.  वे बोलना भी बंद कर दिए.  जब वे बोलना बंद किये उसके कुछ दिनों के बाद १२.०७.२००५ को वे शारीर छोड़ दिए. 
सत्येन्द्र बाबू के इस मृत्यु के बाद समाज तो यही जानी कि उनका किडनी फेल हो गया था जिस कारण उनकी मृत्यु हुयी.  पर उनके इलाज में किस प्रकार की लापरवाही बरती गयी यह मैं आपको ऊपर बताया.  इतना ही नहीं IGIMS से वापस आने के बाद जब उनकी कमजोरी बढती गयी तो उनको ताकत के लिए खून चढाने का या पानी चढाने का या कोई अन्य उपाय भी नहीं किया गया, जबकि उनके शारीर में खून का कमी था.  क्या किया गया उसे भी सुन लें.  सच में पहले से ही उनकी किडनी खराब थी पर उनके मृत्यु का वास्तविक कारण था कि उनको भूखों रखकर मारा गया था.  और इस मायने में उनके बड़े पुत्र किशोर जी (जो पटना में IGMS में उनका ईलाज करवा रहे थे) ही उनके कातिल थे.  कैसे यह जानने के लिए आएँ जानते हैं कि उनके मृत्यु का तात्कालिक कारण क्या था.
यह बात तो सही है कि सत्येन्द्र बाबू की किडनी खराब हो गयी थी.  पर उनके मृत्यु का तात्कालिक कारण किडनी का फेल होना नहीं था.  IGIMS से जब वे सहरसा लौटे तो उनके हालत में सुधार नहीं हुआ.  चूँकि उनका किडनी खराब था, वे लंबे समय से बीमार थे.  उनके साथ ऐसी हो गयी थी कि वे कुछ खाते तो वह पेट में ठहरता ही नहीं था बल्कि उल्टी  हो जाता था.  फिर भी वे खाते थे.  एक मात्र खीरा वह चीज था जिसे वे खाते थे तो उल्टी नहीं होता था अन्यथा अन्य कुछ भी खाने पर उल्टी हो जाता था.  अब इसके पीछे क्या कारण था यह तो मैं नहीं बता सकता, इसका सही कारण तो चिकित्सा विज्ञान ही बताएगा.  पर मैं इतना जरुर जानता हूँ कि जब उनका बीमारी ही यही हो गया कि कुछ भी खाते थे तो उल्टी हो जाता था तो ऐसी स्थिति में स्वाभाविक है कि कोई भी मरीज कुछ खाने से थोड़ा परहेज करेगा ही.  इसी तरह सत्येन्द्र बाबू को भी कुछ खाने से उल्टी हो जाता था तो वे भी बार-बार कुछ खाने से थोड़ा परहेज करने लगे.  पर ऐसी बात नहीं थी कि वे एकदम ही नहीं खाते थे, अपने इच्छानुसार वे खाते भी थे.  आप यह भी सोचिये कि जब बीमारी यही हो गयी है कि कुछ भी खाने से उल्टी हो जाता है तो क्या मरीज के साथ डांट-डपट करने या मरीज को जबरदस्ती खिलाने से क्या उनकी बीमारी ठीक हो जाएगी?  डांट-डपट या जबरदस्ती खिलाने से बीमारी ठीक नहीं हो सकती है बल्कि बीमारी ठीक करने के लिए उचित ईलाज  होनी चाहिए.  पर सत्येन्द्र बाबू के साथ उल्टा ही हुआ.  ईलाज के नाम पर तो सही ढंग से कुछ हो ही नहीं रहा था.  और हुआ क्या?  हुआ यही कि कुछ खाने पर उल्टी होने के कारण मरीज को बार-बार खाने से थोड़ा परहेज करना स्वाभाविक था, सत्येन्द्र बाबू भी बार-बार कुछ खाने से थोड़ा परहेज करने लगे,  इसके कारण उनके पुत्र किशोर जी ने एक दिन उन्हें बहुत ही खरी-खोटी सुनाये.  किशोर जे ने उन्हें बहुत ही डांटा-फटकारा -- "कहते हैं खाने के लिए तो खाते ही नहीं हैं,  नहीं खाइएगा तो भुगतिए ...... भुगत रहे हैं .......... ", इत्यादि बहुत कुछ किशोर जी बोले.  ये तो यहाँ लिखने के लिए मैं कुछ शब्द लिखा पर वहाँ किशोर जी उनके साथ जो किया था व जो माहौल बनाया था उसका वर्णन मैं यहाँ शब्दों में नहीं कर सकता हूँ.  सत्येन्द्र बाबू को अपने बेटे किशोर से बहुत कुछ सुनना पड़ा.  इसका परिणाम क्या हुआ?  इसका परिणाम यह हुआ कि सत्येन्द्र बाबू ने अब एकदम ही खाना छोड़ दिए.  अब जब भी उनकी पत्नी मंजु जी उनको खाने के लिए कहती थी तो वे नहीं खाते थे.  अपने पत्नी मंजु जी के द्वारा खाने के लिए कहने पर वे स्पष्ट कहते थे कि इतना बात सुनकर अब हम नहीं खायेंगे, मुझे मरने दीजिये. ................. पहले तो वे कुछ खाते भी थे पर अब किशोर जी के डांट-डपट के बाद वे एकदम ही न खाने को ठान लिए.  अब जब भी उन्हें खाने के लिए कहा जाता तो वे गुस्सा जाते थे. .............. अब वे एक ही बात कहते थे कि नहीं खायेंगे, मरने दीजिये. ............ इस प्रकार उनके द्वारा पूर्ण रूप से भोजन बंद करने के बाद उनकी पत्नी मंजु जी परेशान हो गयी .............. वे अपने भाई शिव शंकर जी को उनके ईलाज के लिए विचार-विमर्श के लिए बुलवायी.  जिस दिन शिव शंकर जी आए उस रात वे वहीँ रहे, अगले दिन सुबह शिव शंकर जी के सामने सत्येन्द्र बाबू ने थोड़ा खीरा खाया पर फिर उनके जाने के बाद वही स्थिति ............. फिर वे एकदम ही खाना छोड़ दिए व खाने के लिए कहने पर गुस्सा जाते थे व कहते थे कि मर जाने दीजिये.  हाँ,  जिस समय वे खाना छोड़े थे उसके कुछ दिन बाद तक वे दूध लिए थे पर बाद में वे दूध भी लेना छोड़ दिए. ..................... इस प्रकार भोजन पूर्ण रूप से बंद होने के कारण उनकी हालत खराब होती गयी.  कुछ दिनों के बाद वे बोलना भी बंद कर दिए.  जब वे बोलना बंद कर दिए तो उसके कुछ दिनों के बाद १२.०७.२००५ को वे शारीर छोड़ दिए. 
इस प्रकार पूरा समाज तो सत्येन्द्र बाबू के मृत्यु का कारण तो जाना कि किडनी फेल था इसी कारण मृत्यु हो गयी पर इस सच्चाई को लोग नहीं जान सके कि वे किशोर जी के डांट-डपट के कारण भूखे रह रहे थे और मृत्यु का सही तात्कालिक कारण कारण भूख था या भोजन न मिलना था.  यह भी उल्लेखनीय है कि जिस दिन किशोर जी उनको डांट-डपट किये और वे भोजन बंद किये तो उसके बाद फिर कभी भी किशोर जी उनको भोजन करने के लिए कहने के लिए या अपनी गलती मानते हुए क्षमा मांगने के लिए नहीं गए.  अब वे उनको कुछ कहते भी नहीं थे.
अब आप यह अच्छी तरह समझ गए होंगे कि किस प्रकार किशोर जी के डांट-डपट के कारण वे भोजन छोड़े और उनके मृत्यु का तात्कालिक कारण भोजन छोड़ना यानी भूख था और इसके लिए जिम्मेवार किशोर जी ही थे.  और इस प्रकार किशोर जी उनके कातिल से कम नहीं हैं.  क्यों?  आपकी राय में क्या है?  क्या सत्येन्द्र बाबू का ईलाज सही ढंग से हुआ?  अरुण बाबू जो बिना किसी डॉक्टरी डिग्री के उनका होमियोपैथ ईलाज कर रहे थे व उनके द्वारा पेट साफ करने के लिए दिए गए दवाई के बाद उनकी हालत जो बिगड़ी सो सुधार नहीं हुआ और उनकी मृत्यु हुयी तो उनके मृत्यु के लिए जिम्मेवार अरुण बाबू क्यों नहीं हैं?
अब आप बताएं कि सत्येन्द्र बाबू के मृत्यु के लिए जिम्मेवार व दोषी कौन हैं?  व उनके कातिल कौन हैं?  किशोर जी, अरुण बाबू, दिनेश जी, सत्येन्द्र बाबू खुद या कोई अन्य ....................

-- महेश कुमार वर्मा
----------------------
यहाँ प्रस्तुत घटना पूर्ण सच्ची है.   घटना में आए पात्र का नाम भी सही है.  घटना में वर्णित सत्येन्द्र बाबू लेखक महेश कुमार वर्मा  के पिता सत्येन्द्र नाथ दास हैं.  उनकी निधन के ५वीं बरसी से पहले इस घटना की सच्चाई को सार्वजनिक करने के उद्देश्य से यह लिखा गया.  और इस ब्लॉग पोस्ट के माध्यम से सार्वजनिक किया जा रहा है.   पाठकों से निवेदन है कि वे इस घटना पर अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें. 

-- महेश